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तस्वीरें यादों को समेटने और जिंदा रखने का बेहतरीन है जरिया, ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ पर स्थानीय ग्रेंड माळ में दो दिवसीय फोटो प्रदर्शनी का आयोजन….

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विविध / हर साल 19 अगस्त को पूरी दुनिया में ‘वर्ल्ड फोटोग्राफी डे’ या ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन उनलोगों को समर्पित होता है, जिन्होंने खास पलों को तस्वीरों में कैद कर उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बना दिया। एक समय था जब लोगों के पास कैमरा तक नहीं होता था।

खासकर ग्रामीण इलाकों में लोग फोटो खिंचाने के लिए कई किलोमीटर दूर फोटो स्टूडियो में जाते थे। लेकिन आज हर लगभग हर इंसान के पास या तो कैमरा है या कैमरे वाला मोबाइल, जिससे लोग आराम से कहीं भी कभी भी तस्वीरें खींच सकते हैं और उन्हें सहेज कर रख सकते हैं।

दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं, जो फोटोग्राफी के शौकीन हैं और उन्होंने फोटोग्राफी को ही अपना करियर चुन लिया है। खासतौर पर ऐसे ही लोगों के लिए और दुनियाभर के फोटोग्राफरों को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल ये दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं ‘वर्ल्ड फोटोग्राफी डे’ का इतिहास क्या है और इसे मनाने के पीछे की कहानी क्या है। 

तस्वीर की कहानी सचमुच बड़ी दिलचस्प है- माना जाता है कि 5वीं शताब्दी में चीनी और ग्रीक के दार्शनिकों ने प्रकाश और कैमरे के सिद्धांतों के बारे में लोगों को बताया। सन् 1021 में वैज्ञानिक अल-हायतम ने फोटोग्राफिक कैमरे के सबसे पुराने रूप ऑब्सक्यूरा का आविष्कार किया। लेकिन इतिहास यही कहता है, 193 साल पहले, 1826 में फ्रेंच वैज्ञानिक जोसेफ नाइसफोर ने दुनिया की पहली तस्वीर अपने घर की खिड़की से ली थीं, जो काफ़ी अस्पष्ट थी,

ऑब्सक्यूरा कैमरे की मदद से 8 घंटे में पहली तस्वीर को कैप्चर किया गया था,तस्वीर लेने के बाद उसे चांदी या चांदी से ढकी तांबे की प्लेट पर तैयार किया जाता, फ़िर इस प्लेट पर बिटुमिन ऑफ जुडिया नाम का एक रसायन लगाया जाता था और इसे लगाने के बाद तस्वीर के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। इस पूरी प्रक्रिया को हीलियोग्राफी नाम दिया गया था। फ़िर दो वैज्ञानिक ‘जोसेफ नाइसफोर’ और ‘लुइस डॉगेरने’ ने तस्वीर लेने की प्रक्रिया को और विकसित करने की दिशा में काम किया,

फ़िर उन्होंने साल 1837 में, फोटोग्राफिक प्रक्रिया “डॉगोरोटाइप” का आविष्कार किया, जिसमे चांदी या चांदी से ढकी तांबे की प्लेट पर लैवेंडर ऑयल का इस्तेमाल करते हए तस्वीर को एक दिन में तैयार करना संभव बनाया गया। लुईस डॉगेर ने डॉगोरोटाइप प्रक्रिया से 1838 में, एक स्पष्ट तस्वीर खींचकर फोटोग्राफी में सबसे बड़ी उपलब्धि दर्ज की।

माना जाता है कि 9 जनवरी, 1839 को फ्रांसीसी सरकार ने आधिकारिक तौर पर डगुएरियोटाइप का समर्थन किया। फ़िर सात महीने बाद, इसे “मुफ्त उपहार” के रूप में दुनिया तक पहुँचाया। बाद में, इस दिन को विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। सन् 1839, अक्टूबर में दुनिया की पहली ब्लैक एंड व्हाइट सेल्फी ली गई थी। जो आज भी, युनाइटेड स्टेट लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस प्रिंट में सहजकर रखी गई है।

सन् 1861, में फोटोग्राफी के क्षेत्र में एक और क्रांतिकारी परिवर्तन आया, जब स्कॉटलैंड के भौतिक शास्त्री क्लर्क मैक्सवेल ने दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर ली। यह तस्वीर एक फीते की थी, जिसमें लाल, नीला और पीला रंग था। हालाँकि, पहली टिकाऊ रंगीन तस्वीर लेने का श्रेय थॉमस सटन को जाता है।

उनके द्वारा लाल, हरे और नीले फिल्टर के माध्यम से ली गई तीन श्वेत-श्याम तस्वीरों का एक सेट फोटोग्राफिक इमल्शन (तेल या पानी से बने रासायनिक पायस) स्पेक्ट्रम (विस्तृत श्रेणी) के प्रति असंवेदनशील साबित हुआ, इसलिए इसके परिणाम को अपूर्ण मानते हुए इस तस्वीर को जल्द ही भुला दिया गया।

समय के साथ-साथ तस्वीर की तस्वीर और भी साफ़ होती गई। साल 1872 में, फोटोग्राफर एडवर्ड मुएब्रिज ने घोड़ों के हर मूवमेंट को कैमरे में कैद करने के लिए रेसट्रैक पर 12 वायर कैमरे लगाए। फ़िर जमीन को छुए बगैर घोड़ों की तस्वीरों को कैद किया गया। जिसे दुनिया की पहली मूवमेंट वाली तस्वीर या फर्स्ट मोशन पिक्चर भी कह सकते हैं ।

फ्लैशलाइट और वायर फोटोग्राफी के आविष्कारक फोटोग्राफर जॉर्ज शिरास ने 1906 में मिशिगन की वाइटफिश नदी में पहली बार रात में रिमोट से संचालित होने वाले फ्लैशलाइट कैमरे का इस्तेमाल करते हए हिरणों की तस्वीर ली थीं। फोटोग्राफी का सफर अब धरती से पानी की ओर बढ़ा, जब 1926, मैक्सिको में नेशनल जियोग्राफिक के फोटोग्राफर चार्ल्स मार्टिन ने पानी के अंदर रोशनी रखने के लिए मैग्नीशियम फ्लैश पाउडर का इस्तेमाल किया और कैमरे को एक वाटरप्रूफ केस में रखते हुए हॉगफिश की तस्वीर को कैप्चर किया।

उनके इस क्लिक ने वाटर फोटोग्राफी की शुरुआत की। विज्ञान ने फोटोग्राफी की मदद से 1968 में पहली बार चांद से धरती की तस्वीर को कैमरे में कैप्चर किया। तो वहीं नेशनल जियोग्रफिक के फोटोग्राफर स्टीव मैककरी ने 1984, दिसंबर में पाकिस्तान के अफगान रिफ्यूजी कैंप की अफगानी युवती की हरी आंखों में बसे खौफ और ख़ूबसूरती को इस तरह कैमरे में कैद किया कि वह तस्वीर पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बन गई।

फोटोग्राफी में 90 का दशक एक ऐसा दौर था, जब रील वाले कैमरे अपने चरम पर थे। वैसे कई बार इन कैमरों से ली गई, फोटो के स्पष्ट आने की गारंटी नहीं होती थी। लेकिन इसी दशक के अंत तक डिजिटल कैमरे के बढ़ते चलन ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। पहली डिजिटल तस्वीर 1957 में ली गई थी। इनमें रील की जगह मेमोरी कार्ड का इस्तेमाल किया गया। अब कैमरे में कैद हुई तस्वीरों को देखा जा सकता था और रचनात्मक बदलाव करने की भी गुंजाइश थी।

फिर 2000 के दशक में प्रवेश करते ही मोबाइल के कैमरे भी कई बदलाव से गुज़रे और मोबाइल फोटोग्राफी का चलन शुरू हुआ। एक जानकारी के अनुसार साल 2010 में ऑस्ट्रेलिया के एक फोटोग्राफर ने वर्ल्ड फोटोग्राफी डे को खास बनाने और दुनियाभर में फोटोग्राफी का प्रचार करते हुए अपने 270 साथी फोटोग्राफरों के साथ मिलकर उनकी तस्वीरें ऑनलाइन गैलरी के जरिए पेश की। साल 2019 में आई फ़िल्म “फोटोग्राफ” भले ही बॉक्स ऑफिस की दृष्टि से कमजोर साबित हुई हो।

मगर कलाप्रेमी, लेखक के इस सन्देश को समझ पाए कि हम अपनी तस्वीरों से भी खुद को आँकते हए ख़ुशी महसूस करते हैं और तस्वीर खींचने वाले का हुनर किसी बड़े भवन या स्टूडियो का मोहताज नहीं है। एक स्ट्रीट फोटोग्राफर भी आपके चेहरे की हकीकत को सुन्दर तस्वीर में बदल सकता है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि “एक तस्वीर एक हजार शब्दों के बराबर है” विश्व फोटोग्राफी दिवस सिर्फ उन्हीं लोगों को याद करने के लिए नहीं मनाया जाता है, जिन्होंने फोटोग्राफी के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है,बल्कि यह फोटोग्राफी के क्षेत्र में लोगों को आने के लिए प्रोत्साहित करता है। और अपना कौशल दिखाने के लिए प्रेरित भी करता है।

शौकिया उत्साही से लेकर एक पेशेवर फोटोग्राफर और फोटो जर्नलिस्ट, हर कोई फोटोग्राफी के बारे में जागरूकता और विचारों को फैलाकर इस दिन को बड़े जोश के साथ मनाता है, इस दिन का उपयोग यह पहचानने के लिए भी किया जाता है कि तस्वीरें सिर्फ ऐतिहासिक घटनाओं के दस्तावेजीकरण के लिए नहीं है, अपितु व्यक्तिगत पूर्ति के लिए माध्यम भी विकसित करती है। इसलिए विश्व फोटोग्राफी दिवस फोटोग्राफी के लिए कला, शिल्प और जुनून का उत्सव मनाने का अवसर है,

इसी कड़ी में रायगढ़ जिले में भी फोटोग्राफर संघ RPA ने विश्व फोटोग्राफी दिवस के अवसर पर स्थानीय ग्रेंड माळ में दो दिवसीय फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया है,जिसमे फोटोग्राफी के छुए अनछुए पहलुओं को दर्शाया जाएगा,

और अंत में…..
चाहे हम कभी कभार ही फोटो खींचते हो, शौकिया हो चाहे प्रोफेशनल हो, इस दिन को पूरी तरह से जिए और एक ऐसी कला को सम्मान दें, जो आज हमारे जीवन में न केवल अति महत्वपूर्ण है बल्कि अभिन्न अंग बन चुकी है, विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाने के लिए किसी आविष्कार की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसके लिए तो एक जुनून की जरूरत है. आप अपने घर पर ही विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाए और अपनी कलात्मकता अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ साझा करें, विश्व फोटोग्राफी दिवस की सभी को बधाई….

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