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धुलपंचमी के दिन पंतोरा में मनाई गई छड़ीमार होली,सदियों से चली आ रही है परंपरा……….

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जांजगीर चापा / पंतोरा में धुलपंचमी के दिन मनाई गई छड़ीमार होली, सदियों से चली आ रही है परंपरा, दरअसल जिले के पंतोरा में कुंवारी कन्याओं द्वारा छड़ीमार होली खेली जाती है,जिसमे कुंवारी कन्याओं ने ग्रामीणों पर जमकर छड़ियां बरसाई और एक दूसरे पर रंग-गुलाल लगाया,यहाँ ढोल नगाड़ों के साथ कन्याओं की टोली ने गांव में भ्रमण किया और जो राह में मिला उन सब पर छड़ियां बरसाई,

यहाँ बलौदा ब्लाक के पंतोरा में कुंवारी कन्याओं की अनोखी छड़ीमार होली धूल पंचमी को मनाई गई ,जिसे गांव वाले इसे डंगाही त्यौहार कहते हैं,जिसके लिए कुछ ग्रामीण मड़वारानी के जंगल गए और वहां से बांस की छड़ियां काटकर लाए, और दोपहर में मंदिर में छड़ियों की पूजा अर्चना की गई,जिसके बाद मंदिर परिसर में शाम 4 बजे 12 साल तक की कुंवारी कन्याएं इकठ्ठी हुई,

जिनमे बैगा दीपत सारथी व पुजारी फिरत केंवट, राजकुमार जायसवाल द्वारा छड़ियों की पूजा के बाद लड़कियां इन छड़ियों को हाथ में लेकर पहले भवानी मंदिर में दाखिल हुई और देवी देवताओं पर छड़ी के प्रहार के साथ लठमार होली शुरु हुई, मंदिर से बाजे-गाजे व रंग गुलाल के साथ ग्रामीणों की टोली के आगे-आगे छड़ी लिए लड़कियां चल रही थी उन्हें रास्ते में जो भी मिले उन पर ये लड़कियां टूट पड़ी,

गांव के सभी लोग अपने-अपने घरों से निकलकर छड़ीमार होली में शामिल हुए,इस दौरान रंग गुलालों की भी बौछार हुई, हाथों में छड़ी लिए लड़कियों की टोली ग्रामीणों के साथ गांव में रात 8 बजे तक भ्रमण कर लोगों पर छड़ियां बरसाती रहीं, ग्रामीणों का विश्वास हैं कि छड़ीमार होली में जिस पर लड़कियां छड़ी का प्रहार करती हैं,

उन्हें सालभर तक कोई बीमारी नहीं होती जिले में एक मात्र जगह पर यह अनूठी परंपरा है, जिसे देखने पहरिया, बलौदा, कोरबा, जांजगीर सहित आसपास के लोग बड़ी संख्या में लोग आते है,लड़कियों ने उन पर भी छड़ियों से प्रहार किया इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे,

साल भर स्वस्थ रहने की कामना लिए मां अपने दूधमुंहे बच्चों को लेकर घर के सामने लड़कियों की टोली का इंतजार करती रहीं, जैसे ही उनकी टोली घर के सामने पहुंची, बच्चों को उनके सामने कर दिया गया, लड़कियों ने उन पर भी छड़ियां बरसाई,

छड़ीमार होली के लिए चार- पांच ग्रामीण सुबह से छड़ी काटने मड़वारानी के जंगल में पहुंचते हैं और टांगी से एक ही बार में कटने वाली छड़ी को लाया जाता है, ग्रामीण छड़ियां काटने के बाद इसे रास्ते में कहीं भी जमीन पर नहीं रखते, वे सीधे मंदिर पहुंचते हैं, जहां छड़ियों की पूजा-अर्चना होती है,

बरसाने में देश का प्रसिद्ध लठमार होली मनाई जाती है, जबकि जिले के ग्राम पंतोरा में धुलपंचामी के दिन लठमार की तरह छड़ीमार होली मनाई जाती है, हालांकि इसमें लाठी की जगह छड़ियों से प्रहार होता है और इसमें सिर्फ कुंवारी कन्याएं ही छड़ी बरसाती हैं, ऐसे में अपने आप में यह अनूठी होली है, ग्रामीणों को इसका इंतजार साल भर से रहता है, कई घरों में इस होली का आनंद लेने व बच्चों को आशीर्वाद दिलाने बड़ी संख्या में मेहमान भी पहुंचते हैं,,

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