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एसईसीएल दीपका कोयला खदान के धूल से जन-जीवन संकट में,”30 दिनों में नहीं मिला समाधान,तो होगा उग्र आंदोलन”

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कोरबा: साउथ ईस्ट कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की दीपका कोयला खदानों से निकलने वाली कोयले की धूल (कोल डस्ट) से परेशान सिरकी खुर्द गाँव और आसपास के क्षेत्रवासियों ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल, कोरबा के समक्ष नौ सूत्रीय मांग पत्र जमा करते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि खदान प्रबंधन पर्यावरण नियमों का पालन नहीं करता है, तो वे उग्र आंदोलन पर उतरेंगे।

कोयला धूल से जीवन संकट में
ग्रामीणों का आरोप है कि एसईसीएल की दीपका खदानों से कोयला ढोने वाले ट्रकों और मशीनों के कारण हवा में फैल रही जहरीली धूल उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन गई है। सिरकी खुर्द के उप-सरपंच कमलेश्वरी दिव्या और ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के प्रकाश कोर्राम के नेतृत्व में ग्रामीणों ने पर्यावरण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी को ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा, “प्रबंधन की लापरवाही से हमारा दम घुट रहा है। यह जीवन के साथ खिलवाड़ है।”

नौ मांगों में प्रदूषण नियंत्रण और कार्रवाई शामिल
ज्ञापन में खनन गतिविधियों के दौरान पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का पालन सुनिश्चित करने, कोयला ढुलाई के दौरान धूल रोकने के लिए पानी का छिड़काव बढ़ाने, प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य जांच शिविर लगाने, और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई जैसी मुख्य मांगें शामिल हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कंपनी नियमों को नजरअंदाज कर रही है, जिससे हवा और मिट्टी प्रदूषित हो रही है।

“30 दिनों में नहीं मिला न्याय, तो होगा उग्र आंदोलन”
प्रकाश कोर्राम ने कहा, “हमने बार-बार शिकायत की, लेकिन प्रबंधन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अगर 30 दिनों में हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो हम सड़कों पर उतरेंगे।” पर्यावरण बोर्ड ने ज्ञापन प्राप्त करने की पुष्टि की है और मामले की जांच का आश्वासन दिया है।


कोरबा जिला कोयला खनन का प्रमुख केंद्र है, लेकिन एसईसीएल की गतिविधियों के कारण यहाँ के गाँव लगातार प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट झेल रहे हैं। सिरकी खुर्द जैसे गाँवों में सांस की बीमारियाँ और फसलों का नुकसान आम हो गया है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोयला धूल में मौजूद सूक्ष्म कण (पीएम 2.5) फेफड़ों के लिए घातक हो सकते हैं।

स्थानीय प्रशासन और एसईसीएल प्रबंधन की प्रतिक्रिया का अभी इंतजार है। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया है कि इस बार उनकी लड़ाई “अंतिम संघर्ष” होगा।

GAYANATH MOURYA