प्रभात त्रिपाठी के काव्य पाठ से साहित्य अकादमी का कार्यक्रम संपन्न,कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रभात त्रिपाठी के लेखन पर हुई व्यापक चर्चा,जीवन, व्यवहार से लेकर रचनाकार के तौर पर साहित्यकारों ने साझा किये अपने विचार………
रायगढ़ / साहित्य अकादमी, छत्तीसगढ़ के तत्वाधान में आयोजित प्रभात त्रिपाठी एकाग्र के दूसरे दिन प्रभात त्रिपाठी की रचनाओं का साहित्य, रचनात्मक विविध आयाम, उनके संस्मरण और कविता का आयोजन हुआ। पहले दिन की तुलना में दूसरे दिन साहित्यकारों और लोगों का ज्यादा हुजूम उमड़ा। दिनभर प्रभात त्रिपाठी के बारे में ही चर्चा हुई। पहले सत्र में कविता व कथा साहित्य में साहित्यकारों ने उनकी रचनाओं की काफी तारीफ की।
साहित्यकार अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि उनकी रचनाओं में समाजशास्त्र का ढोंग नहीं अपितु सामाजिक यथार्थता परिलक्षित होती है। 90 पैसा और 90 लाख रूपये प्रति मिनट कमाने वाले लोग हैं तो व्यवस्था कैसी होगी अंदाजा लगा सकते हैं। पूरे सिस्टम में ऑब्टेक्ट है और इसी ऑबजेक्ट के चयन में प्रभात जी का कोई सानी नहीं है। मनुष्य और वस्तु के बीच अंतर खत्म हो रहा पहले मनुष्य, मनुष्य के भीतर जीता-मरता था अब वस्तुओं के साथ जीता है और मरता है त्रिपाठी की रचनाएं इस पर चोट करती हैं।
युवा साहित्यकार वसु गंधर्व ने कहा कि प्रभात जी कविताएं दृश्यों में मुखर होती हैं। इनकी कहानी और कविता में दार्शनिक उलझन नहीं रहती। इनकी रचनाओं को जीवन की एक जरूरत की तरह पढ़िए। साहित्कार महेश वर्मा कहते हैं अपने शहर को खोजते हुए उनकी लिखाई मर्मस्पर्शी है। उनकी कविताओं में जीवन दर्शन और यथार्थ है। इनकी कविता का वाचन साधना का कार्य है।
साहित्यकार प्रवीण प्रवाह ने बताया कि जीवन की समग्रता को बिंबो में देखता व्यक्ति है, बिंब चारो ओर है। यह बिंब जब कवि देखता है तो उसकी काव्य शक्ति में आकर्षण होती है और बिंब उसकी ओर आते हैं। बिंब माला और माला कविता का भाव लाती है। पाठक इन्हीं बिंबो से आकर्षित होता है। यह बिंब उनकी कविता में झलकता है। उनकी कविताओं का कैनवास बहुत बड़ा है इस पर चिड़िया बैठाना मुश्किल है।
साहित्यकार लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता ने कहा त्रिपाठी जी के कविकर्म के रूप में हम आधी शताब्दी को समझ सकते हैं। वह समय का आख्यान रखते हैं। साहित्कार प्रभुनारायण ने कहा उनकी कहानी तलघर शानदार है। अंधेर में काफी कुछ मुक्तिबोध का एहसास कराती है। उन्होंने कथानक को तवज्जो नहीं दी ऐसे में उनकी कहानी उलझन पैदा करती है। हिंदी में यदि कथानक नहीं दिखते तो कई सवाल पैदा होते हैं पर इससे त्रिपाठी जी क्या। ये नैरेटिव सेट नहीं करते। इनकी कहानी में ईषद शब्दों का ज्यादा प्रयोग है और सिहर शब्द से ज्यादा लगाव है।
पहले सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में धुव्र शुक्ल ने कहा कवि के सामने ही सारी बाते हो रही है तो प्रभात त्रिपाठी साहित्य प्रतीती हो गया। कवि की नींद उड़ी रहती है तो ईश्वर की नींद भी उड़ी हुई है। कभी प्रभात का कार्य मुक्तिबोध साहित्य का एहसास कराता है। प्रभात की रचना में प्रसन्नता और दुख एक साथ घुले हुए हैं। जिसमें नश्वरता का एहसास गहरा है।
दोपहर 2 बजे ‘रचना के साथ : प्रभात त्रिपाठी की रचनात्मकता के विविध आयाम’ पर केंद्रित विमर्श सत्र हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ रचनाकार कुलजीत सिंह ने किया। सबसे पहले साहित्यकार अरूणेश जो प्रभात त्रिपाठी के छात्र रह चुके ने बताया कि यह सत्र गुरू शिष्य परंपरा भी निभा रहा है। प्रभात सर गंभीर से गंभीर विषय को सामान्य तरीके से समझा देते थे। रचना को उसके समग्र के साथ सीखने के लिए प्रेरित करते थे।
इसी तरह उनके छात्र और साहित्यकार भागवत प्रसाद ने बताय कि हमें प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक साहित्य से बेहतर तरीके से प्रभात सर ने करवाया। साहित्य को समझने के लिए अगर किसी और कला की जरूरत होती तो वह से भी मुहैय्या करा देते थे। वह परंपरागत पढ़ाई पर नहीं विषय की गहराई तक समझाने पर ज्यादा जोर देते थे।
राकेश मिश्र ने बताया वह एक ऐसे छायादार वृक्ष है जिसकी छाया में साहित्य की मिलता है। छोटी-छोटी बाते कैसे महत्वपूर्ण हो इसे भी बताया। उनसे मिलने के बाद हम बेहतर और बढ़े। मेरी शादी का प्रस्ताव भी प्रभात सर लेकर गए थे यह बताता है कि उनका अपने छात्रों से कैसा जुड़ाव था। उनका अपने बेटे सिद्दार्थ के साथ गजब का संबंध है। यह देखकर हमें जलन होती है आज मैं और सिद्दार्थ अच्छे मित्र हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साहित्यकार विनोद तिवारी ने अपने छात्र जीवन के वृतांत को बताकर प्रभात त्रिपाठी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वह व्याख्या के अर्थ से बचते थे। साहित्य के सामाजिक पक्ष पर उनका जोर रहता।
शाम को ‘साकार समय में: संस्मरणों की रोशनी में प्रभात त्रिपाठी’ सत्र आयोजित हुआ। इसमें रायगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार व संस्कृति कर्मी मुमताज भारती ने प्रभात त्रिपाठी से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए। मुमताज भारती उनके तरुणाई के दोस्तों में से एक हैं तो उनके पास सबसे अधिक कहने को था लेकिन उन्होंने संक्षिप्त में प्रभात त्रिपाठी के शांत रहकर लेखन से बागी तेवर और लेखों का जिक्र किया। इसी तरह हरकिशोर दास ने भी प्रभात त्रिपाठी से जुड़े कई संस्मरण सुनाए।
आयोजन का आखिरी सत्र काफी रोचक रहा जहां हिंदी के वरिष्ठ व यशस्वी कवि प्रभात त्रिपाठी, नंद किशोर आचार्य और ध्रुव शुक्ल ने अपनी कविताओं का पाठ किया। प्रभात त्रिपाठी को बहुत सालों के बाद इस तरह से काव्य पाठ करते हुए सभी श्रोता खड़े होकर ताली बजा रहे थे और इस तरह साहित्य अकादमी का दो दिवसीय कार्यक्रम समाप्त हुआ। अंत में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने किया।
एक एक शब्द कहती है कहानी
कार्यक्रम स्थल में ही प्रभात त्रिपाठी की कविताओं पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी लगी हुई है जिसका उद्घाटन पहले दिन कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा किया। पोस्टर ने लोगों का ध्यान खींचा क्योंकि इसके एक एक शब्द अपनी कहानी कहता है जैसे संघर्ष शब्द इसके लिखने का तरीका ही अपने आप में संघर्ष को बताता है। संसार के साथ ग्लोब का चित्र है तो शहर के साथ बैकड्राप में उसकी परिकल्पना दिखती है जिसके पीछे मनोज श्रीवास्तव का योगदान है। 5 दशक से अपनी कला का लोहा मनवाने वाले मनोज ने इस प्रदर्शनी में प्रभात त्रिपाठी की कल्पनाओं को अपने मॉर्डन आर्ट, कलाकारी और ज्ञान की भट्ठी में पकाकार पोस्टर के रूप में सामने रखा।
शहर ने प्रभात को दिया स्नेह : आचार्य
देश के दिग्गज साहित्यकार नंद किशोर आचार्य जो बीकानेर से इस कार्यक्रम में शामिल होने आए थे ने कहा कि प्रभात की रचनाओं में उसका शहर के प्रति चिंतन,प्यार और दर्शन दिखती है इसी तरह शरहवासियों का स्नेह भी उनके प्रति दिखा। दो दिनी कार्यक्रम में लोगों ने उनके बारे में बहुत संजीदगी से सुना। प्रभात के ऊपर कार्यक्रम चिर प्रतीक्षित था। समाज के लिए उन्होंने गहरा विचार विमर्श किया है। 2-4 घंटे में इनकी साहित्य कर्म को नहीं समेटा जा सकता ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए।
गोष्ठी रही गंभीर : प्रभात त्रिपाठी
वरिष्ठ साहित्कार प्रभात त्रिपाठी ने इस आयोजन के लिए साहित्य अकादमी और उसके अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त का आभार जताते हुए कहा कि आज के सभी सत्र बहुत अच्छे हुए। कविता, उपन्यास, कहानी से लेकर मेरी सारी रचनाओं पर वक्ताओं ने गंभीर चर्चा की। मेरा भी मन किया मैं कुछ बोलूं पर उन्हें सुनना ज्यादा अच्छा लगा। मेरे गुरूजन अशोक झा जी का कार्यक्रम में आना मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। कोविड के बाद से मैं घर में ही था इस आयोजन के बहाने मैंने बहुत से अपनों से मिला। खासकर नंदकिशोर आचार्य से उनसे जब मिलो लगता है पहली बार मिले हो या बार-बार मिल रहे ऐसी मिश्रित भावनाएं आती हैं।